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ज्ञानदीप के वाहक: डॉ. एस. आर. रंगनाथन
नमस्कार,
आज मैं एक ऐसे महान व्यक्ति के बारे में आप सभी के समक्ष कुछ शब्द रखने जा रहा हूँ, जिन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में पुस्तकालय विज्ञान (Library Science) को एक नई पहचान दी — वे हैं डॉ. एस. आर. रंगनाथन, जिन्हें हम “भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक” के रूप में जानते हैं।.
परिचय और प्रारंभिक जीवन
डॉ. श्रीनिवास रामानुजन रंगनाथन का जन्म 9 अगस्त 1892 को तमिलनाडु के शियाल नगर में हुआ था। वे एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थे और बचपन से ही अत्यंत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने गणित विषय में स्नातक और फिर स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। पहले वे एक कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे, लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही तय किया था।
🔷 पुस्तकालय विज्ञान में प्रवेश
साल 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय पुस्तकालय का पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त किया गया। यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई — एक गणितज्ञ से एक महान पुस्तकालय वैज्ञानिक बनने की।
उन्हें पुस्तकालय विज्ञान का औपचारिक प्रशिक्षण लंदन जाकर प्राप्त करने का अवसर मिला। वहाँ उन्होंने देखा कि कैसे पुस्तकालयों का बेहतर संचालन हो सकता है। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए भारतीय पुस्तकालयों को नई दिशा दी।
🔶 डॉ. रंगनाथन के पांच सिद्धांत (Five Laws of Library Science)
डॉ. रंगनाथन का सबसे प्रसिद्ध योगदान है पुस्तकालय विज्ञान के पांच नियम, जिन्हें उन्होंने 1931 में प्रस्तुत किया:
1️⃣ पुस्तकें पाठकों के लिए हैं।
2️⃣ प्रत्येक पाठक के लिए उसकी पुस्तक।
3️⃣ प्रत्येक पुस्तक के लिए उसका पाठक।
4️⃣ पुस्तक का अधिकतम उपयोग करें।
5️⃣ पुस्तकालय एक जीवित प्राणी है।
इन सिद्धांतों का अर्थ यह है कि पुस्तकालय केवल पुस्तकों का भंडार नहीं है, बल्कि एक जीवंत संस्था है जो समाज को ज्ञान देने का कार्य करती है।
🔷 कोलन वर्गीकरण प्रणाली (Colon Classification)
डॉ. रंगनाथन ने 1933 में “कोलन क्लासिफिकेशन” नामक पुस्तक वर्गीकरण प्रणाली विकसित की। यह प्रणाली विषयों को एक वैज्ञानिक और तार्किक ढंग से वर्गीकृत करती है। आज भी यह प्रणाली विश्व के कई पुस्तकालयों में उपयोग की जाती है।
🔶 पुस्तकालय शिक्षा की नींव
उन्होंने भारत में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी। उन्होंने लाइब्रेरी साइंस को केवल एक नौकरी न मानकर, इसे एक व्यवस्थित और विद्वतापूर्ण अनुशासन के रूप में विकसित किया।
वे भारतीय पुस्तकालय संघ (ILA) से भी जुड़े और उन्होंने लाइब्रेरी साइंस को स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर शामिल करने में अहम भूमिका निभाई।
🔷 सम्मान और पुरस्कार
उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1957 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके कार्यों को अमूल्य माना और उन्हें देश का गौरव बताया।
आज भी उनके सम्मान में हर वर्ष 9 अगस्त को ‘राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस’ मनाया जाता है।
🔶 उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें:
The Five Laws of Library Science
Colon Classification
Library Administration
Prolegomena to Library Classification
इन पुस्तकों ने ना केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी पुस्तकालय विज्ञान को एक नई दिशा दी।
🔷 निधन और विरासत
27 सितंबर 1972 को डॉ. रंगनाथन का निधन हुआ। परंतु उनके विचार, उनके सिद्धांत, और उनका योगदान आज भी जीवित है। उनकी सोच ने लाखों पुस्तकालयों और करोड़ों पाठकों को प्रभावित किया।
🔶 निष्कर्ष
साथियों, डॉ. एस. आर. रंगनाथन का जीवन हमें यह सिखाता है कि ज्ञान का सबसे बड़ा मंदिर पुस्तकालय होता है, और पुस्तकालय को श्रेष्ठ बनाने वाला सबसे बड़ा व्यक्ति उसका एक समर्पित पुस्तकालयाध्यक्ष।
उनकी दृष्टि थी — “पुस्तकें तभी सार्थक होती हैं जब वे पाठकों तक पहुँचें।”
आज जब हम इंटरनेट और डिजिटल युग में जी रहे हैं, तब भी उनके सिद्धांत उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे।
आइए, इस राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस पर हम यह संकल्प लें कि हम पुस्तकों को पढ़ने, साझा करने और संरक्षित करने की परंपरा को आगे बढ़ाएँगे।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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